मगर देश में धुआं-धुआं है
किया सोच से पहले अंधा
अब आँगन में कुआं-कुआं है
इक दूजे पर भौंके पहले
अब संसद में हुवां-हुवां है
आमजनों की झुकी कमरिया
केवल शासक जवां-जवां है
बाँट रहे यूँ सुमन रौशनी
जला रहे बस मकां-मकां है
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