पढना-लिखना या व्यापार,
खेती या फिर कारोबार,
काम करें मिल के आपस में, कोई नहीं बिगाड़ चाहिए।
लेकिन अब तो हर पेशे में, पहले एक जुगाड़ चाहिए।।
कोई सच की राह दिखाते, कोई किस्मत के गुण गाते।
कुछ निष्ठा को रोज बदलकर, बस दरबारी-राग सुनाते।
जो पीछे रह जाते उनको, बस तर्कों की आड़ चाहिए।
लेकिन अब तो -----
हर शासक की एक कहानी, वो करते अपनी मनमानी।
भूल सभी क्यों अक्सर जाते, ये सत्ता बस आनी-जानी।
अंकुश खातिर जन-विरोध की, यारों एक दहाड़ चाहिए।
लेकिन अब तो -----
बात सुमन ये कितनी छोटी, मिले वक्त पर सबको रोटी।
इक समान हम मानव हैं तो, भला करें क्यों नीयत खोटी?
बेईमान को वक्त वक्त पर, मिलकर एक पछाड़ चाहिए।
लेकिन अब तो -----
1 comment:
वाह
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