बोझ हमेशा ढोया अपना
सपना फिर भी खोया अपना
जीवन है तो सपने भी हैं
सपना खूब पिरोया अपना
काम किया जो वही भोगते
बीज करम का बोया अपना
दुख ऐसे जो कहना मुश्किल
छुप के दुखड़ा रोया अपना
गंगा - जल से बेहतर आँसू
दाग उसी से धोया अपना
अनजाने में कुछ मिलते जो
सचमुच लगते गोया अपना
लोक-जागरण काम सुमन का
लोग जगे पर सोया अपना
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