भले धूप या छाँव मुसाफिर
नहीं रुके ये पाँव मुसाफिर
अवसर पे सब अपने अपने
खेल रहे हैं दाँव मुसाफिर
हर दिन सुबहो शाम मुसाफिर
नहीं तुझे आराम मुसाफिर
हैं सैलाब यहाँ नफरत के
लोग जोड़ना काम मुसाफिर
सुविधा घोर अभाव मुसाफिर
सुनता कौन सझाव मुसाफिर
तब सुधार जब घर - घर में हो
शिक्षा का फैलाव मुसाफिर
पैसे बिना इलाज मुसाफिर
कितना मुश्किल आज मुसाफिर
आफत में निर्धन का जीवन
बन उनकी आवाज मुसाफिर
कुछ ऐसे सुल्तान मुसाफिर
बस दिखलाते शान मुसाफिर
बेपरवाह रहे जनमत से
लोग-बाग हलकान मुसाफिर
बनो सभी के मीत मुसाफिर
लिख जनता के गीत मुसाफिर
सबकी हो आवाज एक तो
मिल सकती है जीत मुसाफिर
जो भी हो परिणाम मुसाफिर
कर तू अपना काम मुसाफिर
खुशबू के सँग सदा सुमन तू
बढ़े चलो अविराम मुसाफिर
1 comment:
सुंदर रचना..
Post a Comment