Wednesday, January 3, 2024

मत कर कीर्तन खाली-खाली

कभी  नहीं  मन खाली-खाली 
फिर क्पूँ आँगन खाली-खाली

किसी  तरह  से जो भी अरजा
इक दिन वो धन खाली-खाली

कल  के भोजन की चिन्ता में 
निंदिया   बैरन  खाली-खाली

जोर ठंढ  है  पर  कपड़े  बिन 
कितनों के तन खाली-खाली

क्यों  अमीर कहते भारत को 
अनगिन निर्धन खाली-खाली 

खाते   हैं, पर   कितने  खाते 
खाता जन-धन खाली-खाली 

सच ही लिखना सदा सुमन तू 
मत कर कीर्तन खाली-खाली 
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