मगर आचरण से अशिष्ट हो
क्यों व्याकुल साबित करने में
जग में केवल तुम विशिष्ट हो
नेकी का अभिनय करते पर
भीतर से तुम बहुत क्लिष्ट हो
मान दिया कब तू ने किसको
विद्वज्जन चाहे वरिष्ठ हो
चोट वही खाते हैं उतने
तुम जिसके जितने घनिष्ठ हो
आँखन देखी सच बोलूँ तो
आमजनों के तुम अरिष्ट हो
सुमन चाहता कल की पीढ़ी
सभी घरों में सदा शिष्ट हो
2 comments:
वाह
बहुत सुन्दर...
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