छुआछूत से कब हुआ, देश अपन ये मुक्त?
जाति - भेद पहले बहुत, अब VIP युक्त।।
धर्म सदा कर्तव्य है, अन्ध - भक्ति है रोग।
ज्ञान बाँटते मोक्ष पर, कैसे जिन्दा लोग??
जहाँ सियासी संत हो, और जेल में संत।
मौसम भले वसंत का, दिल में नहीं वसंत।।
धर्म भूल कर तोड़ते, जो सरकारी रेल।
पुण्य कमाते तीर्थ में, या धर्मों का खेल??
सिर्फ चुनावी - काल में, करे धर्म जो याद।
असल धर्म क्या है यही, या धार्मिक उन्माद??
धर्म सदा धारण करे, और सिखाये त्याग।
मगर सियासी धर्म में, बस नफरत की आग।।
सबका जीवन हो सुलभ, सभी धर्म का मर्म।
मानवता से श्रेष्ठ जो, बता सुमन वो धर्म??
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