Wednesday, April 17, 2024

मर-मर करके जीते हैं

मन-भर  कितने जी  पाते पर, मन भर-भर के जीते हैं 
आपस में  ही सुमन चमन के, लड़-लड़ करके जीते हैं

वर्ग-विभाजन  फूलों में भी, माली जब खुद करता हो 
उपवन  में  कम   गिनती जिसकी, डर-डर के जीते हैं

पौधे  विवश  हुए उपवन के, बिना खाद और पानी के
बारिश,  जाड़ा,  गरमी  में  भी, थर-थर करके जीते हैं

इतना सुन्दर सजा बगीचा, जिस माली की मिहनत से
उनका  दोष  गिने  ये  माली, बड़-बड़  करके  जीते हैं 

जीवन  सबका इस  दुनिया में, मानो सचमुच नेमत है
उजड़  गए हैं  यहाँ चमन कुछ, मर-मर करके जीते हैं

Saturday, April 6, 2024

दलदल में सारे दलबदलू

शासन का हर अंग सामने 
इधर  चुनावी जंग सामने

दलदल में  सारे दलबदलू 
दिखा   रहे  हैं  रंग सामने 

अपने पहले दल की निन्दा 
अजब सियासी ढंग सामने 

जनसेवा में लोग सियासी
क्यों जनता अधनंग सामने

अब गारन्टी क्या वादों की
सबके  सब   बेरंग   सामने 

खुद  को नेक बता दूजे पर
करते    रहते   व्यंग सामने 

क्यों जन-जन में है चुप्पी ये
देख  सुमन   है  दंग सामने 
सादर 
श्यामल सुमन

जमाना बदल रहा

अब कहता ये अखबार, जमाना बदल रहा।
पर गली - गली बटमार, जमाना बदल रहा।।

सत्ता की खास सनक है, खबरों की वही चमक हैं। 
अनगिन भूखे - नंगों की, जनता को नहीं भनक है।
है  मस्त अभी सरकार, जमाना बदल रहा।
पर गली - गली -----

अक्सर  चुनाव  भी आता, लेकर दुराव भी आता। 
सत्ता खातिर धन-बर्षा, तो फिर अभाव भी आता। 
जो चुप उनको धिक्कार, जमाना बदल रहा। 
पर गली - गली -----

अपराधी  को  संरक्षण, बस अपनों को आरक्षण। 
सारे  हैं खेल सियासी, जनता करती है निरीक्षण। 
क्यों सोच-सुमन बीमार, जमाना बदल रहा। 
पर गली - गली -----

Thursday, April 4, 2024

पर जीवन आसान नहीं है

भले अभी व्यवधान नहीं है 
पर जीवन आसान नहीं है

आस - पास में अक्सर देखा 
सूरत पर मुस्कान नहीं है

क्यों परिजन से प्रेम-प्रदर्शन 
अगर प्यार में जान नहीं है 

जब खटास हो रिश्तों में तो
रहो दूर, नुकसान नहीं है 

क्या समझे हो सत्य, धर्म का
मत कहना विज्ञान नहीं है 

जो समाज में नफरत बाँटे 
वो सचमुच इन्सान नहीं है

हक छीने जो सुमन किसीका 
ऐसा हिन्दुस्तान नहीं है

इससे बाहर कौन है?

क्या दुनिया में केवल स्वारथ, इससे बाहर कौन है?
जो स्वारथ से बाहर जीते, वो समाज में गौण है।।

चाहत सबको सुख पाने की, कोशिश करते बनें सुखी?
मगर पड़ोसी सुख में हो तो, दिखते फिर क्यूँ लोग दुखी?
जीवन एक अबूझ पहेली, इक उलझा षटकोण है।
जो स्वारथ से -----

ब्रह्मा, विष्णु, महेश की चाहे, जीसस, अल्ला की बातें। 
मानव खातिर आज धरा पर, वो बातें ही सौगातें।
उसे समझ चल जीवन - पथ पर, आगे बहुत त्रिकोण है। 
जो स्वारथ से -----

सबके जैसा असली नकली, मुझको जीवन का दिखता।
आसानी से लोग समझ लें, शब्द पिरोकर नित लिखता।
लोक-जागरण काम कलम का, रहा सुमन कब मौन है?
जो स्वारथ से -----

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