तनिक बतायें नेताजी, राष्ट्रवादियों के गुण खासा।
उत्तर सुनकर दंग हुआ और छायी घोर निराशा।।
नारा देकर गाँधीवाद का, सत्य-अहिंसा को झुठलाना।
एक है ईश्वर ऐसा कहकर, यथासाध्य दंगा करवाना।
जाति प्रांत भाषा की खातिर, नये नये झगड़े लगवाना।
बात बनाकर अमन-चैन की, शांति-दूत का रूप बनाना।
खबरों में छाये रहने की, हो उत्कट अभिलाषा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।
किसी तरह धन संचित करना, लक्ष्य हृदय में हरदम इतना।
धन-पद की तो लूट मची है, लूट सको संभव हो जितना।
सुर नर मुनि सबकी यही रीति, स्वारथ लाई करहिं सब प्रीति।
तुलसी भी ऐसा ही कह गए बोलो तर्क सिखाऊँ कितना।।
पहले "मैं" हूँ राष्ट्र "बाद" में ऐसी रहे पिपासा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।
आरक्षण के अन्दर आरक्षण, आपस में भेद बढ़ाना है।
फूट डालकर राज करो, यह नुस्खा बहुत पुराना है।
गिरगिट जैसे रंग बदलना, निज-भाषण का अर्थ बदलना।
घड़ियाली आंसू दिखलाकर, सबको मूर्ख बनाना है।
हार जाओ पर सुमन हार की कभी न छूटे आशा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।
"सूत्र" एक है "वाद" हजारों, टिका हुआ है भारत में।
राष्ट्रवाद तो बुरी तरह से, फँस गया निजी सियासत में।।
Monday, May 31, 2010
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17 comments:
श्यामल जी एक कविता याद आ गई अदम गोंडवी साहब की....
काजू भुने प्लेट में विस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
पक्के समाजवादी हैं तस्कर हों या डकैत
इतना असर है खादी के उजले लिबास में
आजादी का वो जश्न मनायें तो किस तरह
जो आ गए फुटपाथ पर घर की तलाश में
पैसे से आप चाहें तो सरकार गिरा दें
संसद बदल गयी है यहाँ की नखास में
जनता के पास एक ही चारा है बगावत
यह बात कह रहा हूँ मैं होशो-हवास में
-देव
आरक्षण के अन्दर आरक्षण, आपस में भेद बढ़ाना है।
फूट डालकर राज करो, यह नुस्खा बहुत पुराना है।
गिरगिट जैसे रंग बदलना, निज-भाषण का अर्थ बदलना।
घड़ियाली आंसू दिखलाकर, सबको मूर्ख बनाना है।
हार जाओ पर सुमन हार की कभी न छूटे आशा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।
बड़ा सुक्ष्मावलोकन किया है, अच्छा लगा मेहनत दिख रही है और रंग भी लायी है
बहुत सटीक लिखा, एक अच्छी रचना धन्यवाद
सही है भाई ....
कोई इलाज भी है ?
किसी तरह धन संचित करना, लक्ष्य हृदय में हरदम इतना।
धन-पद की तो लूट मची है, लूट सको तुम लूटो उतना।
सुर नर मुनि सबकी यही रीति, स्वारथ लाई करहिं सब प्रीति।
तुलसी भी ऐसा ही कह गए और तर्क सिखाऊँ कितना।।
पहले "मैं" हूँ राष्ट्र "बाद" में ऐसी रहे पिपासा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।। waah bahut sundar....
आरक्षण के अन्दर आरक्षण, आपस में भेद बढ़ाना है।
फूट डालकर राज करो, यह नुस्खा बहुत पुराना है।
गिरगिट जैसे रंग बदलना, निज-भाषण का अर्थ बदलना।
घड़ियाली आंसू दिखलाकर, सबको मूर्ख बनाना है।
हार जाओ पर सुमन हार की कभी न छूटे आशा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।
Haar pahnanewalon ki bhi jay ho ..pahanne walon ki bhi jay ho...ekhi mittee se bane hain sab, phir algaav kyon ho?
नारा देकर गाँधीवाद का, सत्य-अहिंसा क झुठलाना।
एक है ईश्वर ऐसा कहकर, यथासाध्य दंगा करवाना।
जाति प्रांत भाषा की खातिर, नये नये झगड़े लगवाना।
बात बनाकर अमन-चैन की, शांति-दूत का रूप बनाना।
खबरों में छाये रहने की, हो उत्कट अभिलाषा।
राष्ट्रवादियों के गुण खासा।।
satik ...saty..
----- eksacchai { AAWAZ }
http://eksacchai.blogspot.com
पुनः सरकारी तंत्र की खामियों को इंगित करती अच्छी रचना सर...
आंशिक सहमत !!!
श्यामल जी
चिरंजीव भवः
किसी तरह धन संचित करना,लक्ष्य ह्रदय में हरदम इतना
धन पद की तो लूट मची है,लूट सको तुम लूटो उतना
भले ही स्वतंत्र हो गए पर इतनी अंधेर गर्दी फिरंगिओं के राज में ना थी
हमारे प्रिय नेता
भारत रत्न पाने को रोता
सार्थक पोस्ट!
"सूत्र" एक है "वाद" हजारों, टिका हुआ है भारत में।
राष्ट्रवाद तो बुरी तरह से, फँस गया निजी सियासत में।।
सच्ची कडवी बात लिखी है श्यामल जी......मगर सच यही है....!
आजकल की गिरी हुई, घटिया, नैतिकताहीन, चरित्रहीन, और स्वार्थों की राजनीति पर आपने करारा प्रहार किया हैं.
ऐसी ही कई और प्रहार-कर्ताओं की आवश्यकता हैं, ताकि राजनीति में कुछ सुधार होने की गुंजाइश कायम रहे.
धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
अधिकार और कर्तव्य मे कौन बडा?
राष्ट्रवाद किसके हिस्से मे अधिकार वाले के
कि कर्तव्य वाले के? यही सब बात दिमाग मे घूमते रह्ती है। सुन्दर प्रस्तुति।
aapka andaaz sirf aapka hai..is bheed me aap jo alag khade dikhte hai apni shailee me uske liye dhero badhayee
बहुत सुन्दर और सठिक रचना लिखा है आपने! बहुत बढ़िया लगा! इस उम्दा रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
very niceeee
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