Monday, April 23, 2012

सलीब ढोते हैं

सुलगती रोज चिताओं पर लोग रोते हैं
जमीर बेचते जिन्दा में, लाश होते हैं

कुदाल बन के भी जीना क्या, जिन्दगी होती
चमक में भूलते, नीयत की, सलीब ढोते हैं

शुकून कल से मिलेगा हैं, चाहतें सब की
मिले क्यों आम भला उनको, नीम बोते हैं

लगी है आग पड़ोसी के घर में क्यों सोचें
मिलेंगे ऐसे हजारों जो, चैन सोते हैं

नहीं सुमन को निराशा है, भोर आने तक
जगेंगे लोग वही फिर से, जमीर खोते हैं

18 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

जीवन की वास्तविकता को सामने रख दिया है।

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

क्या बात है वाह!

गुड्डोदादी said...

श्यामल
आशीर्वाद

शुकून कल से मिलेगा ये, चाहतें सब की
मिले क्यों आम भला उनको, नीम बोते हैं

अश्रु भी नहीं रुके शब्दकोश में शब्द ढूँढें नहीं मिले

RITU BANSAL said...

बहुत सुन्दर !

ANULATA RAJ NAIR said...

वाह!!!!!!!!!!!
बहुत खूबसूरत ............

अनु

सदा said...

वाह ...बहुत खूब

कल 25/04/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


... मैं तबसे सोच रही हूँ ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुलगती रोज चिताओं पर लोग रोते हैं
जमीर बेच के जिन्दा जो, लाश होते हैं
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,....

MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....

Unknown said...

लेकिन सच्चाई ये भी है कि,
.
तुमने शुली पे लटकते जिसे देखा होगा , ,
वक्त आयेगा वही शख्स मसीहा होगा ।।

गुड्डोदादी said...

श्यामल
आशीर्वाद

आपके गीत हों गजल
मैथिलि के गद्ध पद्ध हो या लेख

सभी में चट्टानों का लावा है सूरज भी डर कर बादलों की ओट में मुख ढक (^|^)

Anju (Anu) Chaudhary said...

वाह बहुत खूब



मेरी मंजिल को दूर बताने वाले ...मैंने देखा हैं क्षितिज से क्षितिज तक कोई साथ नहीं ||...अनु

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत उम्दा और सार्थक प्रस्तुति!

विभूति" said...

जिन्दगी के यथार्थ को बताती सार्थक अभिवयक्ति....

आशा बिष्ट said...

sundar shbd rachna

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

लगी है आग पड़ोसी के घर में क्यों सोचें
मिलेंगे ऐसे हजारों जो, चैन सोते हैं


सत्य को कहती खूबसूरत गजल

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत बढ़िया सर!


सादर

sangita said...

हर इन्सान की तकदीर में सलीब लिखी होती है ,
वक्त और होता है हिम्मत एक सी होती है.
शानदार लिखा है आपने जीवन की सच्चाई नजर आती है आपकी पोस्ट में ।बधाई।

कविता रावत said...

नहीं सुमन को निराशा है, भोर आने तक
जगेंगे लोग वही फिर से, जमीर खोते हैं
...जगने में देर तो लगती है ..
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति

mridula pradhan said...

kathor sachchayee......

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विश्व की महान कलाकृतियाँ- पुन: पधारें। नमस्कार!!!