सुलगती रोज चिताओं पर लोग रोते हैं
जमीर बेचते जिन्दा में, लाश होते हैं
कुदाल बन के भी जीना क्या, जिन्दगी होती
चमक में भूलते, नीयत की, सलीब ढोते हैं
शुकून कल से मिलेगा हैं, चाहतें सब की
मिले क्यों आम भला उनको, नीम बोते हैं
लगी है आग पड़ोसी के घर में क्यों सोचें
मिलेंगे ऐसे हजारों जो, चैन सोते हैं
नहीं सुमन को निराशा है, भोर आने तक
जगेंगे लोग वही फिर से, जमीर खोते हैं
जमीर बेचते जिन्दा में, लाश होते हैं
कुदाल बन के भी जीना क्या, जिन्दगी होती
चमक में भूलते, नीयत की, सलीब ढोते हैं
शुकून कल से मिलेगा हैं, चाहतें सब की
मिले क्यों आम भला उनको, नीम बोते हैं
लगी है आग पड़ोसी के घर में क्यों सोचें
मिलेंगे ऐसे हजारों जो, चैन सोते हैं
नहीं सुमन को निराशा है, भोर आने तक
जगेंगे लोग वही फिर से, जमीर खोते हैं
18 comments:
जीवन की वास्तविकता को सामने रख दिया है।
क्या बात है वाह!
श्यामल
आशीर्वाद
शुकून कल से मिलेगा ये, चाहतें सब की
मिले क्यों आम भला उनको, नीम बोते हैं
अश्रु भी नहीं रुके शब्दकोश में शब्द ढूँढें नहीं मिले
बहुत सुन्दर !
वाह!!!!!!!!!!!
बहुत खूबसूरत ............
अनु
वाह ...बहुत खूब
कल 25/04/2012 को आपकी इस पोस्ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.
आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!
... मैं तबसे सोच रही हूँ ...
सुलगती रोज चिताओं पर लोग रोते हैं
जमीर बेच के जिन्दा जो, लाश होते हैं
वाह!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,....
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: गजल.....
लेकिन सच्चाई ये भी है कि,
.
तुमने शुली पे लटकते जिसे देखा होगा , ,
वक्त आयेगा वही शख्स मसीहा होगा ।।
श्यामल
आशीर्वाद
आपके गीत हों गजल
मैथिलि के गद्ध पद्ध हो या लेख
सभी में चट्टानों का लावा है सूरज भी डर कर बादलों की ओट में मुख ढक (^|^)
वाह बहुत खूब
मेरी मंजिल को दूर बताने वाले ...मैंने देखा हैं क्षितिज से क्षितिज तक कोई साथ नहीं ||...अनु
बहुत उम्दा और सार्थक प्रस्तुति!
जिन्दगी के यथार्थ को बताती सार्थक अभिवयक्ति....
sundar shbd rachna
लगी है आग पड़ोसी के घर में क्यों सोचें
मिलेंगे ऐसे हजारों जो, चैन सोते हैं
सत्य को कहती खूबसूरत गजल
बहुत बढ़िया सर!
सादर
हर इन्सान की तकदीर में सलीब लिखी होती है ,
वक्त और होता है हिम्मत एक सी होती है.
शानदार लिखा है आपने जीवन की सच्चाई नजर आती है आपकी पोस्ट में ।बधाई।
नहीं सुमन को निराशा है, भोर आने तक
जगेंगे लोग वही फिर से, जमीर खोते हैं
...जगने में देर तो लगती है ..
बहुत सुन्दर सार्थक प्रस्तुति
kathor sachchayee......
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