Monday, April 29, 2019

आदत मस्त कलन्दर है

अपने सोने, उसके सोने में यारों कुछ  अन्तर है
अपनी आँखें प्यासीं रहतीं उसमें भरा समन्दर है

रोज सभ्यता सीख सीखकर हम सब इतने सभ्य हुए
कहने वाले तो कहते हैं पूर्वज अपना बन्दर है

भूख प्यार की किसे नहीं है भले  ढंग हो अलग अलग
कोई रोता प्यार की खातिर कोई बना सिकन्दर है

काबिज हो जाते सत्ता पर लोक लुभावन नारों से
वक्त निभाने का जब आया वादा सब छूमन्तर है

ऊँच नीच जितने जीवन के हम सब मिलके देख रहे
सुमन करेगा जो करना है आदत मस्त कलन्दर है 

1 comment:

M VERMA said...

कोई रोता प्यार की खातिर कोई बना सिकन्दर है

दुनिया की रीत तो यही है
बहुत सुंदर

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